Thursday, November 14, 2019

।। माफ करना -मेरे अनुज।।


जन्म से हू मै बडा ; पर नसीब कीं जंजिरो में  जकडा।
रास्ता जो  मीला, मैं चल पडा , साथ आये  गैर ;अपनों को मैं छोड चला।

वक्त की  चाल थी, मै समझ ना सका, बलवान था वक्त  और मै  मासुम अंजान । 

जिती हुई बाजी हारा मै कई बार ,
क्योंकि गद्दार नीकला भरोंसे  का हर ईन्सान ।

लिखा है  नसिबने  भुगता है मासूम अन्जानो ने ,
जिन्दगी है यही ;समजले तु बस यही।

मर्ज है बड़ा । वक्त है नही मेरा । 
पर डटा हु मैं , और कसम है , लाज रखुंगा मां कीं कोखकी सदा ।

शिकवा; तुझे है मुझसे,  जायज है । नसीब को हराने मैं बस कुछ मोहलत और दे।
मेरी जीम्मेदारी का बोझ तु थोड़ा और सह लै।

लड रहा हु मै तेरे ही भरोसे , जित मै ; गया, तो तख्त तेरा है सदा के लिये।

- सुमेध आनंद

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