Wednesday, May 21, 2014

।। कर रहा हूँ।।

एक फटे तक़दीर को कोशिश के सुई से सीने की जुर्ररत कर रहा हूँ।  
हँस के तक़दीर को रुलाने की कोशिश कर रहा हूँ। 
मेरी जंग ज़माने से कम तक़दीर से ज्यादा है.. वरना.... अंजान ज़माने वो ताकत कहा की मुझपे तोहमत लगाये।   

फिरभी......     
              
हँस के जुल्मो को सिने से लगा रहा हूँ।  कर रहा हूँ कोशिश ,खामोश नहीं हूँ।
तक़दीर के जालिम सितमो को अपने कोशिश में कैद कर रहा हूँ।  
 हंस के तक़दीर को रुलाने की कोशिश करक रहा हूँ।  
 हंस के तक़दीर को रुलाने की कोशिश कर रहा हूँ।  
 By सुमेध डोंगरे (लिख रहा हूँ मै)

।। मेरी माँ।।(आई)

Dedicated  to my आई स्वर्गीय present & wannabe mom's
             
          
मैने(सबने) अपने माँ के पेट से जन्म लिया है। 
जो पैदा करने का दर्द सहा मेरे(सबकी) माँ ने ,उसका मोल मैं फूलो का  कत्ल करके पत्थरके भगवान से नहीं ले सकता , इसीलिए मैं भगवान को नहीं पूजता।

मैं रोया तो आचल उसका था ,मैं हँसा  तोभी आसू (खुशीके)उसके थे।मेरी हर गलती और हर कमयाबी का एहेसास उसके पास हैं,था और रहेगा।

मार या प्यार जो भी था उस समय, उस वक्त उसका अच्छा था। 
क्योकी पिता के कर्त्यावोंका और अपने संस्कारो का फर्ज भी उसे अपने अंश में दिखाना था।
अपने जवानी को दाव पे लगा के जो जीवन उसने मुझे दिया उसका कर्ज मुझे मंदिरमें नही उसके सेवा से चुकाना है।
इसिलिये हर मंदिर के कवाड मेरे लीये बंद है।

मै (उसके)जवानी के ऐय्याशी का नहीं, प्यार का प्रतिबिम्ब हूँ, एक  पाक रिश्ते का वजूद हूँ। ये अहेसास किसी मन्दिर के सीडियों पे नहीं ; क्यौंकी? .........मानवता, मंदिर के भिकारियों को भिक देने में नहीं किसी एक का जीवन बनाने में है, जिसतरह उसने मुझे बनाया है।
त्याग के( माँने )अपने जवानी को,जीवन जो मुझे दिया है, उसका मोल किसी मंदिर या मक्के की दहलीज़ पे नही ,मेरी (सबकी) माँ के सेवा में है ,इसीलिए हर भगवान कतार में है।

क्या ज़रूरत है  भगवान की? जब उस(माँ)की दूआँ से  हर ईन्सान की ईन्सानियत  की रखवाली मुझसे होती है।
अब भी ,कोई भी,भगवान मुझसे  रूठा है तोह वो अपने माँ से पुछे  की, मैं भक्त क्यों नहीं बन पाया? मेरी भक्ति मेरी माँ है नाकि (भगवानकी) तेरे मूर्ति की पूजा में है (लिख रहा हु मै)