जन्म से हू मै बडा ; पर नसीब कीं जंजिरो में  जकडा।
रास्ता जो  मीला, मैं चल पडा , साथ आये  गैर ;अपनों को मैं छोड चला।
वक्त की  चाल थी, मै समझ ना सका, बलवान था वक्त  और मै  मासुम अंजान । 
जिती हुई बाजी हारा मै कई बार ,
क्योंकि गद्दार नीकला भरोंसे  का हर ईन्सान ।
लिखा है  नसिबने  भुगता है मासूम अन्जानो ने ,
जिन्दगी है यही ;समजले तु बस यही।
मर्ज है बड़ा । वक्त है नही मेरा । 
पर डटा हु मैं , और कसम है , लाज रखुंगा मां कीं कोखकी सदा ।
शिकवा; तुझे है मुझसे,  जायज है । नसीब को हराने मैं बस कुछ मोहलत और दे।
मेरी जीम्मेदारी का बोझ तु थोड़ा और सह लै।
लड रहा हु मै तेरे ही भरोसे , जित मै ; गया, तो तख्त तेरा है सदा के लिये।
- सुमेध आनंद
