Wednesday, May 21, 2014

।। कर रहा हूँ।।

एक फटे तक़दीर को कोशिश के सुई से सीने की जुर्ररत कर रहा हूँ।  
हँस के तक़दीर को रुलाने की कोशिश कर रहा हूँ। 
मेरी जंग ज़माने से कम तक़दीर से ज्यादा है.. वरना.... अंजान ज़माने वो ताकत कहा की मुझपे तोहमत लगाये।   

फिरभी......     
              
हँस के जुल्मो को सिने से लगा रहा हूँ।  कर रहा हूँ कोशिश ,खामोश नहीं हूँ।
तक़दीर के जालिम सितमो को अपने कोशिश में कैद कर रहा हूँ।  
 हंस के तक़दीर को रुलाने की कोशिश करक रहा हूँ।  
 हंस के तक़दीर को रुलाने की कोशिश कर रहा हूँ।  
 By सुमेध डोंगरे (लिख रहा हूँ मै)

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